कोलकाता की काली माता की कहानी:- कोलकाता की काली माता का इतिहास और उनकी आराधना से जुड़ी कहानी न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारत के आध्यात्मिक इतिहास का एक अहम हिस्सा भी है। काली माता, जिन्हें शक्ति या दुर्गा का एक रूप माना जाता है, हिंदू धर्म में एक प्रमुख देवी हैं। उनके नाम का अर्थ है “काल” यानी समय, और उन्हें समय, परिवर्तन, मृत्यु, और विनाश की देवी के रूप में पूजा जाता है। कोलकाता में काली माता का मंदिर, जिसे ‘कालीघाट काली मंदिर’ के नाम से जाना जाता है, भारत के सबसे प्रसिद्ध और पवित्र धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर न केवल भारत से बल्कि विश्व भर से भक्तों को आकर्षित करता है।
काली माता का पौराणिक इतिहास
काली माता की उत्पत्ति से संबंधित कई कहानियाँ पुराणों और अन्य धार्मिक ग्रंथों में मिलती हैं। इन कहानियों में से एक सबसे प्रसिद्ध कथा है जब राक्षसों का अंत करने के लिए देवी दुर्गा ने काली का रूप धारण किया। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय में धरती पर अत्याचार बढ़ गया था। असुरों (राक्षसों) ने धरती पर त्राहि मचा रखी थी। उस समय देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था, लेकिन असुरों का अंत नहीं हुआ था। असुरों के राजा रक्तबीज के पास एक विशेष वरदान था कि उसकी रक्त की एक-एक बूंद से नए-नए असुर जन्म ले सकते थे। देवी दुर्गा ने जब रक्तबीज का सामना किया, तो उसके रक्त की बूँदें धरती पर गिरते ही नए असुर पैदा हो गए, जिससे उसका अंत करना मुश्किल हो गया।
तब देवी दुर्गा ने अपने अंदर से एक शक्तिशाली और प्रचंड रूप काली को प्रकट किया। काली माता का रूप अत्यंत विकराल था – काला रंग, भयानक मुख, लाल लटाएँ, और चार भुजाएँ। उन्होंने रक्तबीज का वध किया और उसका रक्त धरती पर गिरने से पहले ही पी लिया, ताकि उससे नए असुर न उत्पन्न हो सकें। इस प्रकार, काली ने रक्तबीज का अंत किया और अन्य असुरों का भी नाश किया।
काली का यह रूप भयावह तो था ही, परंतु यह विनाशकारी शक्ति भी था, जो केवल बुराई और अंधकार का अंत करने के लिए था। जब देवी काली ने युद्ध समाप्त कर दिया, तो उनका क्रोध शांत नहीं हो रहा था। वह अपने विध्वंसकारी रूप में पूरे ब्रह्मांड को नष्ट करने के लिए अग्रसर हो रही थीं। तब भगवान शिव उनके रास्ते में लेट गए। काली माता का पैर जैसे ही शिव के सीने पर पड़ा, उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ, और उन्होंने अपने क्रोध को शांत किया।
काली माता और कोलकाता
कहते हैं कि कोलकाता शहर का नाम ‘काली’ शब्द से ही लिया गया है। कालीघाट, जहाँ काली माता का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है, एक प्रमुख तीर्थ स्थल है और इसे शक्ति पीठों में से एक माना जाता है। शक्ति पीठ हिंदू धर्म के अनुसार वे स्थान हैं, जहाँ देवी सती के शरीर के अंग गिरे थे। पौराणिक मान्यता है कि जब भगवान शिव अपनी पत्नी सती के मृत शरीर को लेकर शोक में ब्रह्मांड में घूम रहे थे, तब भगवान विष्णु ने उनके शरीर को खंड-खंड कर दिया, ताकि शिव के इस दुःख का अंत हो सके। सती का दाहिना पैर की कुछ अंगुलियाँ कालीघाट में गिरीं, और यही कारण है कि यह स्थान शक्तिपीठों में गिना जाता है।
कालीघाट मंदिर का इतिहास
कालीघाट मंदिर का ऐतिहासिक महत्व भी कम नहीं है। यह मंदिर 19वीं सदी में बनाया गया था, लेकिन इससे पहले यहाँ पर काली माता की पूजा स्थानीय लोग प्राचीन काल से करते आ रहे थे। मंदिर का वर्तमान रूप राजा मानसिंह के वंशजों द्वारा बनवाया गया था, लेकिन इससे पहले भी यहाँ पर एक छोटी मूर्ति थी, जिसकी लोग पूजा करते थे।
कालीघाट में काली माता की मूर्ति को विशेष रूप से ‘काली’ कहा जाता है। यह मूर्ति अन्य काली मूर्तियों से अलग है। यहाँ काली माता के चार हाथ हैं – दो हाथों में तलवार और राक्षस का कटा हुआ सिर है, जबकि अन्य दो हाथ आशीर्वाद मुद्रा में हैं। माता का मुख लाल है, जो उनके क्रोध और शक्ति का प्रतीक है। उनके गले में नरमुंडों की माला और कमर में हाथों की माला है। यह रूप न केवल शक्ति और विनाश का प्रतीक है, बल्कि यह न्याय और कर्म का भी प्रतीक है।
मंदिर के गर्भगृह में काली माता की यह अद्वितीय प्रतिमा स्थापित है, जिसे विशेष तौर पर ‘माँ काली’ कहा जाता है। यहाँ पर हर दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शन करने आते हैं और अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। यह मंदिर न केवल कोलकाता या बंगाल के लोगों के लिए, बल्कि पूरे भारतवर्ष और विश्व के हिंदू धर्मावलंबियों के लिए आस्था का केंद्र है।
काली पूजा और कोलकाता
कोलकाता में काली माता की पूजा विशेष रूप से दीवाली के समय की जाती है। अन्य स्थानों पर जहाँ लक्ष्मी पूजा का आयोजन होता है, वहीं बंगाल में दीवाली के अवसर पर काली पूजा की जाती है। इस अवसर पर कोलकाता में भव्य उत्सव होता है और कालीघाट मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। काली माता के इस उत्सव में उनका रूप रौद्र और शक्तिशाली दिखाया जाता है, जो बुराई का नाश करती हैं और अपने भक्तों की रक्षा करती हैं।
काली पूजा के दौरान, श्रद्धालु काली माता की मूर्तियों को सजाते हैं और उन्हें लाल साड़ी, फूलों की माला, और आभूषण पहनाते हैं। मंदिरों और घरों में भव्य आरती और भोग का आयोजन होता है। लोग काली माता से अपनी समृद्धि, स्वास्थ्य, और संकटों से मुक्ति की प्रार्थना करते हैं।
आध्यात्मिक महत्व
काली माता केवल विनाश की देवी नहीं हैं, बल्कि उन्हें पुनर्जन्म और सृजन की देवी भी माना जाता है। उनका विकराल रूप यह दर्शाता है कि जीवन में परिवर्तन और पुनरुत्थान की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है। काली माता की पूजा करने से भक्तों में साहस और शक्ति का संचार होता है। वे अपने भक्तों को यह सिखाती हैं कि बुराई और अज्ञानता को समाप्त करके ही सच्चे ज्ञान और शांति की प्राप्ति हो सकती है।
काली माता को आत्मज्ञान की देवी भी कहा जाता है। उनका काला रंग अज्ञानता का प्रतीक है, जिसे दूर करने के लिए वे प्रकट होती हैं। उनके द्वारा धारण किया गया खड्ग ज्ञान का प्रतीक है, जो अज्ञानता और बुराई को नष्ट करता है। उनका विकराल रूप यह सिखाता है कि संसार में अच्छाई और बुराई के बीच संघर्ष अनिवार्य है, लेकिन अंततः अच्छाई की ही विजय होती है।
आधुनिक संदर्भ
आज के समय में भी काली माता की पूजा कोलकाता और बंगाल में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। खासकर कालीघाट मंदिर में प्रतिदिन हज़ारों भक्त दर्शन के लिए आते हैं। यह स्थान भक्तों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। कोलकाता के निवासी माँ काली को अपनी रक्षा करने वाली देवी के रूप में मानते हैं, और जीवन के कठिन समय में उनकी आराधना करते हैं।
समाज में जब भी कोई विपत्ति आती है या जब लोग जीवन में कठिनाइयों का सामना करते हैं, तब वे काली माता की शरण में आते हैं। काली माता की पूजा समाज के विभिन्न वर्गों और समुदायों में एकता और सहिष्णुता का प्रतीक बन चुकी है।
निष्कर्ष
काली माता का कोलकाता और बंगाल की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर में विशेष स्थान है। उनका रूप और उनकी पूजा का महत्व न केवल अतीत में, बल्कि वर्तमान में भी प्रासंगिक है। काली माता जीवन के उस सत्य का प्रतीक हैं, जो यह दर्शाता है कि जीवन और मृत्यु, निर्माण और विनाश, एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। उनके भक्त उन्हें माँ के रूप में मानते हैं, जो अपनी संतान की हर परिस्थिति में रक्षा करती हैं और उन्हें सही मार्ग दिखाती हैं।