भारत का संविधान कितने दिन में बना:- भारत का संविधान, जो आज एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक भारत की नींव है, को तैयार करने में 2 साल, 11 महीने, और 18 दिन का समय लगा। इस प्रक्रिया के दौरान बहुत सारे महत्वपूर्ण निर्णय, चर्चाएँ और बहसें हुईं, जिनके परिणामस्वरूप एक ऐसा दस्तावेज़ तैयार हुआ, जिसने भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने की दिशा में मार्गदर्शन किया।
प्रस्तावना और प्रारंभिक तैयारी
भारत का संविधान बनने की प्रक्रिया 1946 में शुरू हुई थी जब ब्रिटिश सरकार ने भारतीय नेताओं को संविधान सभा के गठन की अनुमति दी। संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव प्रांतीय विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों के माध्यम से हुआ था। संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई थी। इस बैठक में डॉ. राजेंद्र प्रसाद को अध्यक्ष चुना गया और डॉ. भीमराव अंबेडकर को ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया।
डॉ. अंबेडकर, जिन्हें भारतीय संविधान के “मुख्य वास्तुकार” के रूप में भी जाना जाता है, ने संविधान का मसौदा तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके नेतृत्व में, ड्राफ्टिंग कमेटी ने संविधान के प्रारूप को तैयार करने के लिए विभिन्न स्रोतों से प्रेरणा ली, जिसमें ब्रिटिश, अमेरिकी, कनाडाई, और आयरिश संविधान शामिल थे।
संविधान सभा की बैठकें और चर्चाएँ
संविधान सभा की बैठकें नियमित रूप से होती रहीं और उनमें संविधान के विभिन्न प्रावधानों पर विस्तार से चर्चा की गई। इन बैठकों में विभिन्न राजनीतिक दलों और विचारधाराओं के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। संविधान के हर पहलू पर गहन चर्चा की गई, जिसमें नागरिकों के मौलिक अधिकार, संघीय ढांचा, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, और चुनाव प्रणाली शामिल थे।
संविधान सभा की कुल 11 सत्रों में 165 दिनों तक चर्चा चली। इन चर्चाओं के दौरान विभिन्न मुद्दों पर असहमति भी हुई, लेकिन अंततः संविधान सभा ने सर्वसम्मति से संविधान के मसौदे को स्वीकार किया। 26 नवंबर 1949 को संविधान को अंगीकार किया गया, और इसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया।
संविधान की विशेषताएँ
भारत का संविधान दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है, जिसमें 395 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियाँ, और 22 भाग शामिल हैं। यह विभिन्न स्रोतों से प्रेरित है और भारतीय समाज की विविधता को ध्यान में रखते हुए इसे तैयार किया गया है। इसमें नागरिकों के मौलिक अधिकारों का प्रावधान किया गया है, जिसमें स्वतंत्रता, समानता, और धार्मिक स्वतंत्रता शामिल हैं।
संविधान में एक संघीय ढांचे की स्थापना की गई, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया। इसमें संसदीय प्रणाली को अपनाया गया, जिसमें प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता है और राष्ट्रपति राष्ट्र का संवैधानिक प्रमुख होता है। न्यायपालिका को स्वतंत्र और निष्पक्ष बनाए रखने के लिए विशेष प्रावधान किए गए, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों की स्थापना की गई।
चुनौतीपूर्ण यात्रा
संविधान निर्माण की प्रक्रिया में कई चुनौतियाँ भी आईं। विभाजन के समय देश के विभाजन और सांप्रदायिक तनाव ने संविधान सभा के सामने कई कठिनाइयाँ खड़ी कीं। इसके अलावा, विभिन्न राज्यों और समुदायों की विविधताओं को ध्यान में रखते हुए एक संतुलित और सर्वमान्य संविधान तैयार करना भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य था।
इन सभी चुनौतियों के बावजूद, संविधान सभा ने एक ऐसा संविधान तैयार किया जो भारत की सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक विविधताओं को समाहित करता है। संविधान ने भारत को एक एकीकृत और स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
निष्कर्ष
संविधान निर्माण की यह प्रक्रिया भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। यह केवल एक दस्तावेज़ नहीं है, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र की आत्मा है। 2 साल, 11 महीने, और 18 दिनों की इस यात्रा में भारतीय नेताओं ने अद्वितीय धैर्य, परिपक्वता, और दूरदर्शिता का परिचय दिया। संविधान ने भारत को एक ऐसा मार्गदर्शन दिया है, जो इसे एक मजबूत, स्थिर और समृद्ध लोकतंत्र के रूप में स्थापित करने में सहायक रहा है।
आज, भारत का संविधान न केवल देश के शासन की आधारशिला है, बल्कि यह देशवासियों के अधिकारों और कर्तव्यों का संरक्षक भी है। यह भारतीय लोकतंत्र की शक्ति और स्थिरता का प्रतीक है, और इसे हर भारतीय के लिए गर्व का विषय होना चाहिए।