भील जनजाति की विवाह पद्धति:- भील जनजाति भारत की एक प्रमुख जनजाति है, जो मुख्यतः राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र राज्यों में पाई जाती है। भील समुदाय की सांस्कृतिक परंपराएं और विवाह पद्धति उनके सामाजिक ताने-बाने का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। भीलों की विवाह पद्धति अन्य समाजों से भिन्न और विशिष्ट है, क्योंकि उनके रीति-रिवाजों और अनुष्ठानों में प्रकृति और पुरखों की आराधना की गहरी झलक मिलती है।
1. विवाह का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
भील जनजाति में विवाह केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं, बल्कि दो परिवारों और समुदायों के बीच एक गहरा सामाजिक संबंध है। विवाह को जीवन का सबसे महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है, जो व्यक्ति को सामाजिक रूप से परिपक्व और जिम्मेदार बनाता है। विवाह का उद्देश्य केवल एक नए परिवार का निर्माण करना नहीं, बल्कि सामाजिक उत्तरदायित्वों और पारिवारिक कर्तव्यों का पालन करना होता है।
भीलों में विवाह की कई पद्धतियाँ प्रचलित हैं, जैसे कि आदान-प्रदान (बदला विवाह), खरीद विवाह (जिसमें दूल्हा दुल्हन को खरीदता है), और सहमति विवाह (प्रेम विवाह)। इनमें से प्रत्येक पद्धति का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व है, जो भील समाज की परंपराओं और धार्मिक विश्वासों से जुड़ा हुआ है।
2. विवाह की प्रारंभिक प्रक्रियाएँ
भील समुदाय में विवाह की प्रक्रिया काफी लंबी और जटिल होती है। सबसे पहले, दूल्हे के परिवार द्वारा दुल्हन के परिवार से विवाह का प्रस्ताव रखा जाता है। इसे “मांगना” कहा जाता है। अगर दोनों परिवारों के बीच सहमति हो जाती है, तो विवाह की तारीख तय की जाती है। दूल्हे के परिवार को दुल्हन के परिवार को कुछ धनराशि या वस्तुएं प्रदान करनी होती हैं, जिसे स्थानीय भाषा में “दान” कहा जाता है। यह दान विवाह की सहमति का प्रतीक होता है और इसे सामाजिक मान्यता प्राप्त होती है।
3. विवाह के प्रकार
भील जनजाति में विवाह के कई प्रकार प्रचलित हैं, जिनमें से प्रमुख हैं:
3.1. खरीद विवाह
इस पद्धति में दूल्हे के परिवार को दुल्हन के परिवार को कुछ धनराशि या संपत्ति प्रदान करनी होती है। यह विवाह पद्धति भील समाज में सबसे प्रचलित है और इसे सामाजिक मान्यता प्राप्त है। इस प्रक्रिया के दौरान दूल्हे का परिवार दुल्हन के परिवार से मोलभाव करता है, और विवाह तभी होता है जब दोनों परिवार एक निश्चित राशि पर सहमत होते हैं।
3.2. आदान-प्रदान विवाह
इस विवाह पद्धति में दो परिवारों के बीच बेटियों का आदान-प्रदान होता है। उदाहरण के लिए, अगर एक परिवार अपनी बेटी का विवाह दूसरे परिवार के बेटे से करता है, तो बदले में दूसरे परिवार को अपनी बेटी का विवाह पहले परिवार के बेटे से करना होता है। यह पद्धति भील समाज में भाईचारे और पारस्परिकता की भावना को दर्शाती है।
3.3. प्रेम विवाह
भील समाज में प्रेम विवाह भी स्वीकार्य होते हैं, विशेषकर तब जब दोनों परिवारों की सहमति हो। अगर लड़का और लड़की एक-दूसरे को पसंद करते हैं, तो वे अपने परिवारों से अनुमति मांगते हैं और फिर उनका विवाह सामाजिक रीति-रिवाजों के अनुसार होता है। इस प्रकार के विवाह में भी दान या धनराशि का आदान-प्रदान होता है, लेकिन इसमें प्रमुखता प्रेम और सहमति को दी जाती है।
3.4. घुसपैठ विवाह (हरवा विवाह)
इस पद्धति में लड़का और लड़की बिना परिवारों की अनुमति के भागकर विवाह करते हैं। ऐसी स्थिति में लड़के को दुल्हन के परिवार को एक बड़ी धनराशि देनी होती है, जिसे “हरवा” कहा जाता है। यह धनराशि सामाजिक अनुशासन और परिवार की प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए दी जाती है।
4. विवाह की रस्में और अनुष्ठान
भील जनजाति के विवाह में कई धार्मिक और सांस्कृतिक रस्में होती हैं। ये रस्में भीलों की आस्था और विश्वासों को प्रकट करती हैं, जो मुख्यतः प्रकृति और पुरखों की पूजा पर आधारित होते हैं।
4.1. मंगनी और सगाई
विवाह की प्रक्रिया मंगनी या सगाई से शुरू होती है, जिसे स्थानीय भाषा में “रोक” कहा जाता है। इस रस्म में दूल्हा और दुल्हन के परिवार एक-दूसरे को उपहार देते हैं और विवाह की तिथि तय करते हैं। सगाई के बाद, दूल्हा और दुल्हन को समाज के सामने पति-पत्नी के रूप में मान्यता मिल जाती है, लेकिन उनका विधिवत विवाह बाद में होता है।
4.2. विवाह के दिन की रस्में
विवाह के दिन, दूल्हा अपने परिवार और रिश्तेदारों के साथ दुल्हन के घर जाता है। इसे “बारात” कहा जाता है। बारात में नाच-गाना और पारंपरिक संगीत का आयोजन होता है। दुल्हन के घर पहुंचने पर दूल्हा और उसके परिवार का स्वागत किया जाता है और उन्हें खाने-पीने की व्यवस्था की जाती है।
4.3. मंडप और अग्नि पूजा
विवाह के मुख्य अनुष्ठान मंडप में होते हैं, जो एक विशेष प्रकार का टेंट होता है, जहां दूल्हा और दुल्हन अग्नि के सामने सात फेरे लेते हैं। अग्नि भील जनजाति में पवित्र मानी जाती है, और इस अनुष्ठान के दौरान पति-पत्नी जीवनभर एक-दूसरे का साथ निभाने की शपथ लेते हैं।
4.4. सिंदूर और मंगलसूत्र
भील जनजाति में विवाह की सबसे महत्वपूर्ण रस्मों में से एक है सिंदूरदान और मंगलसूत्र पहनाना। विवाह के दौरान दूल्हा दुल्हन की मांग में सिंदूर भरता है और उसे मंगलसूत्र पहनाता है, जो उनकी विवाहिता होने का प्रतीक होता है।
5. विवाह के बाद की परंपराएँ
विवाह के बाद, दुल्हन को विदा किया जाता है और वह अपने पति के घर जाती है। इस प्रक्रिया को “विदाई” कहा जाता है, जिसमें दुल्हन के परिवार के सदस्य उसे आशीर्वाद देते हैं और उसे उसके नए जीवन के लिए शुभकामनाएं देते हैं। विदाई के बाद दूल्हे के घर पहुंचने पर दुल्हन का स्वागत किया जाता है और उसे परिवार का हिस्सा माना जाता है।
भील समाज में विवाह के बाद पति-पत्नी के बीच कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का स्पष्ट बंटवारा होता है। पति मुख्य रूप से परिवार की आजीविका के लिए जिम्मेदार होता है, जबकि पत्नी घर की देखभाल और बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी संभालती है।
6. आधुनिक समय में बदलाव
वर्तमान समय में भील जनजाति की विवाह पद्धति में कई बदलाव आ रहे हैं। शहरीकरण, शिक्षा और आर्थिक प्रगति के कारण भील समाज में विवाह की परंपराओं में आधुनिकता का प्रभाव देखा जा रहा है। अब भील समुदाय के लोग परंपरागत विवाह पद्धतियों के साथ-साथ कानूनी विवाह और कोर्ट मैरिज को भी अपनाने लगे हैं। इसके साथ ही, विवाह में खर्च और दान-राशि की मात्रा में भी कमी आई है।
निष्कर्ष
भील जनजाति की विवाह पद्धति उनके सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह न केवल दो व्यक्तियों को बल्कि उनके परिवारों और समुदायों को भी एक साथ बांधने का माध्यम है। हालांकि आधुनिक समय में भील समाज की विवाह परंपराओं में बदलाव आ रहा है, फिर भी उनके रीति-रिवाज और अनुष्ठान आज भी उनके समाज में गहरी जड़ें जमाए हुए हैं।