युगाण्डा का इतिहास in Hindi:- युगांडा पूर्वी अफ्रीका का एक देश है जिसकी राजधानी कंपाला है। युगांडा का इतिहास काफी पुराना और विविधतापूर्ण है। इस इतिहास में जातीय संघर्ष, उपनिवेशवाद, स्वतंत्रता संघर्ष और राजनीतिक उथल-पुथल जैसे कई महत्वपूर्ण घटनाएं शामिल हैं।
प्रारंभिक इतिहास
युगांडा का प्रारंभिक इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है, जब यहां विभिन्न जातीय समूह बसते थे। इन समूहों में बगांडा, बान्यांकोले, बसोगा, और बगिसू प्रमुख थे। बगांडा सबसे शक्तिशाली राज्य था, जिसने 19वीं सदी के मध्य में युगांडा के बड़े हिस्से पर शासन किया। बगांडा राज्य की सत्ता केंद्रीकृत थी और यहां एक मजबूत सैन्य संरचना थी।
यूरोपीय संपर्क और उपनिवेशवाद
19वीं सदी के अंत में यूरोपीय शक्तियों ने अफ्रीका के विभाजन की प्रक्रिया शुरू की, जिसे “अफ्रीका की दौड़” (Scramble for Africa) कहा जाता है। 1877 में युगांडा में ब्रिटिश मिशनरियों का आगमन हुआ और उसके बाद ब्रिटिश साम्राज्य ने इस क्षेत्र में अपनी रुचि दिखानी शुरू कर दी।
1894 में, युगांडा एक ब्रिटिश प्रोटेक्टरेट बन गया। ब्रिटिश शासन के तहत युगांडा में प्रशासनिक और आर्थिक बदलाव किए गए। ब्रिटिशों ने यहां की परंपरागत राजनीतिक व्यवस्थाओं को बनाए रखा, लेकिन उनके ऊपर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया। युगांडा में कॉफी और चाय जैसे नकदी फसलों का उत्पादन बढ़ा, जिसने अर्थव्यवस्था को काफी बदल दिया।
स्वतंत्रता संघर्ष
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, अफ्रीका के अधिकांश हिस्सों में राष्ट्रवादी आंदोलनों की लहर उठी। युगांडा में भी स्वतंत्रता की मांग बढ़ने लगी। 1940 और 1950 के दशक में, विभिन्न राजनीतिक दल और नेता स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने लगे।
1950 के दशक में युगांडा ने स्वशासन की दिशा में कदम बढ़ाना शुरू किया। 1961 में युगांडा को आंशिक स्वशासन मिला और मिल्टन ओबोटे प्रधानमंत्री बने। 9 अक्टूबर 1962 को युगांडा को पूर्ण स्वतंत्रता मिली और यह ब्रिटिश कॉमनवेल्थ का सदस्य बना।
स्वतंत्रता के बाद की राजनीति
स्वतंत्रता के बाद, युगांडा की राजनीति में अस्थिरता आई। मिल्टन ओबोटे ने 1966 में संविधान को बदलकर सत्ता को केंद्रीकृत किया और राष्ट्रपति का पद ग्रहण किया। 1971 में, सेना के प्रमुख जनरल इदी अमीन ने तख्तापलट कर ओबोटे को हटा दिया और खुद को राष्ट्रपति घोषित कर दिया।
इदी अमीन का शासनकाल (1971-1979) युगांडा के इतिहास का सबसे काला अध्याय माना जाता है। इस दौरान व्यापक मानवाधिकार उल्लंघन, जातीय हिंसा और आर्थिक संकट हुआ। इदी अमीन ने 1972 में भारतीय समुदाय के 60,000 से अधिक लोगों को युगांडा से निकाल दिया, जिससे देश की अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ा।
1979 में तंजानिया और युगांडा के निर्वासित नेताओं के सहयोग से इदी अमीन की सत्ता का अंत हुआ। इसके बाद मिल्टन ओबोटे ने फिर से सत्ता संभाली, लेकिन उनका दूसरा शासनकाल भी विवादास्पद और हिंसात्मक रहा।
युगांडा में सिविल वॉर और बाद की राजनीति
1980 के दशक में युगांडा में गृहयुद्ध छिड़ गया, जिसमें यॉवेरी मुसेवेनी की नेशनल रेसिस्टेंस आर्मी (NRA) ने बड़ी भूमिका निभाई। 1986 में मुसेवेनी ने काबुल पर कब्जा कर लिया और राष्ट्रपति बने।
मुसेवेनी के शासनकाल में युगांडा में कुछ स्थिरता आई और अर्थव्यवस्था में सुधार हुआ। उन्होंने कई आर्थिक सुधार और बाजार-उन्मुख नीतियों को लागू किया। हालांकि, उनके शासनकाल की आलोचना भी होती रही है, खासकर मानवाधिकार उल्लंघनों और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में कमी के कारण।
वर्तमान युगांडा
युगांडा ने 21वीं सदी में प्रवेश करते हुए कई चुनौतियों का सामना किया। देश में एचआईवी/एड्स, गरीबी, और भ्रष्टाचार जैसी समस्याएं मौजूद हैं। इसके बावजूद, युगांडा ने शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति की है।
यॉवेरी मुसेवेनी 1986 से राष्ट्रपति हैं और उनके लंबे शासनकाल ने राजनीतिक स्थिरता के साथ-साथ विवादों को भी जन्म दिया है। 2021 के चुनावों में मुसेवेनी ने एक बार फिर जीत हासिल की, लेकिन विपक्ष और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने इन चुनावों की निष्पक्षता पर सवाल उठाए।
युगांडा का इतिहास संघर्ष, साहस, और अनुकूलन का एक ज्वलंत उदाहरण है। इस देश ने औपनिवेशिक काल, तानाशाही, और गृहयुद्ध की चुनौतियों का सामना किया है और आज भी अपने विकास की दिशा में अग्रसर है। युगांडा की यात्रा यह दिखाती है कि कैसे एक देश कठिनाइयों के बावजूद अपनी पहचान को बनाए रखते हुए आगे बढ़ सकता है।