विश्व में कोयला उत्पादन में भारत का स्थान:- कोयला उत्पादन के क्षेत्र में भारत एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वैश्विक ऊर्जा स्रोतों की बात करें तो कोयला प्रमुख स्थान पर आता है। भारत ऊर्जा की भारी मांग को पूरा करने के लिए कोयले पर बहुत अधिक निर्भर करता है। कोयला उत्पादन और उपयोग के मामले में भारत विश्व के अग्रणी देशों में शामिल है। इस लेख में हम विस्तार से भारत में कोयला उत्पादन की स्थिति, इसके वैश्विक परिप्रेक्ष्य, आर्थिक प्रभाव, पर्यावरणीय चुनौतियों और भविष्य की संभावनाओं पर चर्चा करेंगे।
भारत में कोयला उत्पादन का इतिहास
भारत में कोयला उत्पादन का इतिहास 18वीं शताब्दी के अंत से जुड़ा हुआ है, जब अंग्रेजों ने कोयले की खदानों की खोज और विकास किया। भारत का कोयला उद्योग 1774 में झारखंड के रानीगंज में शुरू हुआ था, और तब से यह क्षेत्रिक और राष्ट्रीय स्तर पर एक महत्वपूर्ण उद्योग बन गया है। धीरे-धीरे, यह उद्योग भारत की आर्थिक प्रगति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया।
1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, सरकार ने कोयला खदानों के राष्ट्रीयकरण का निर्णय लिया और यह उद्योग पूरी तरह से सरकारी नियंत्रण में आ गया। 1970 के दशक में, कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण किया गया और ‘कोल इंडिया लिमिटेड’ (CIL) की स्थापना की गई, जो अब दुनिया की सबसे बड़ी कोयला उत्पादक कंपनियों में से एक है। यह सरकारी कंपनी भारत के कुल कोयला उत्पादन का लगभग 80% योगदान देती है।
भारत की वर्तमान कोयला उत्पादन स्थिति
भारत में कोयला उत्पादन मुख्यतः चार राज्यों – झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल – में होता है। झारखंड में सबसे अधिक कोयला उत्पादन होता है, इसके बाद ओडिशा और छत्तीसगढ़ का स्थान आता है। भारत के पास दुनिया के कुल कोयला भंडार का लगभग 10% हिस्सा है और यह कोयला उत्पादन में विश्व में दूसरे स्थान पर है, चीन के बाद।
2019-2020 के आंकड़ों के अनुसार, भारत ने लगभग 730 मिलियन टन कोयले का उत्पादन किया, जो वैश्विक कोयला उत्पादन का 10% से अधिक है। यह उत्पादन मुख्य रूप से थर्मल कोयले का होता है, जिसका उपयोग बिजली उत्पादन के लिए किया जाता है। भारत में कोयले का मुख्य उपभोक्ता ऊर्जा क्षेत्र है, जो कोयले का लगभग 70% उपयोग करता है। बाकी का हिस्सा इस्पात, सीमेंट, उर्वरक और अन्य उद्योगों में जाता है।
कोयला उत्पादन में भारत का वैश्विक स्थान
भारत, कोयला उत्पादन में विश्व में दूसरे स्थान पर है, पहले स्थान पर चीन है। चीन विश्व का लगभग 50% कोयला उत्पादन करता है, जबकि भारत का योगदान वैश्विक उत्पादन का लगभग 10% है। संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया अन्य प्रमुख कोयला उत्पादक देश हैं, लेकिन उत्पादन के मामले में वे भारत के मुकाबले पीछे हैं। भारत में कोयला खपत भी विश्व में दूसरे स्थान पर है, और इस वजह से यह कोयले के आयात पर भी निर्भर करता है।
आर्थिक प्रभाव
कोयला उद्योग भारत की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है। यह लाखों लोगों को रोजगार प्रदान करता है और इसके साथ ही विभिन्न उद्योगों के लिए ऊर्जा और कच्चे माल की आपूर्ति करता है। कोयला खदानों में सीधा रोजगार पाने वाले लोगों के अलावा, इससे जुड़े अन्य उद्योगों में भी लाखों लोगों को काम मिलता है, जैसे कि परिवहन, मशीनरी, और निर्माण उद्योग।
कोयला उद्योग भारतीय रेलवे के लिए भी एक महत्वपूर्ण योगदानकर्ता है, क्योंकि रेलवे कोयले के परिवहन से भारी राजस्व अर्जित करता है। इसके अलावा, कोयला से जुड़ी परियोजनाओं में निवेश और नई तकनीकों के विकास से भारत की आर्थिक वृद्धि को मजबूती मिलती है।
पर्यावरणीय चुनौतियां
भारत में कोयला उत्पादन के साथ कई पर्यावरणीय चुनौतियां भी जुड़ी हैं। कोयला खदानों से उत्सर्जित प्रदूषण और खनन प्रक्रियाओं के दौरान पर्यावरण को होने वाले नुकसान से संबंधित मुद्दे लंबे समय से चर्चा में हैं। कोयला खनन के कारण जंगलों की कटाई होती है, जिससे जैव विविधता को नुकसान पहुंचता है और वन्यजीवों के निवास स्थान समाप्त होते हैं। इसके अलावा, कोयला खनन से मिट्टी का क्षरण, जल प्रदूषण और वायु प्रदूषण भी होता है।
कोयला दहन से बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है, जो जलवायु परिवर्तन में एक प्रमुख कारक है। भारत, जो पहले से ही जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से जूझ रहा है, कोयला आधारित ऊर्जा पर अपनी निर्भरता के कारण इस समस्या का और अधिक सामना कर रहा है।
भारत में कोयला उत्पादन के सुधार की आवश्यकता
हाल के वर्षों में भारत ने कोयला उत्पादन के क्षेत्र में कई सुधार किए हैं। इनमें खनन प्रक्रियाओं को अधिक पारदर्शी और कुशल बनाना, पर्यावरणीय नियमों को सख्त करना, और निजी कंपनियों को कोयला खनन में प्रवेश की अनुमति देना शामिल है। सरकार ने “कोल ब्लॉक्स” की नीलामी की प्रक्रिया को भी अधिक पारदर्शी बनाया है, जिससे घरेलू और विदेशी निवेशकों के लिए अवसर बढ़े हैं।
इसके साथ ही, भारत स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की ओर भी तेजी से बढ़ रहा है। सौर, पवन, और परमाणु ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में निवेश बढ़ रहा है, लेकिन फिर भी कोयला निकट भविष्य में ऊर्जा उत्पादन का एक प्रमुख स्रोत बना रहेगा। भारत सरकार ने 2022 तक कोयला उत्पादन को 1 बिलियन टन तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा था, लेकिन पर्यावरणीय और आर्थिक दबावों के कारण यह लक्ष्य थोड़ा चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
भारत का ऊर्जा भविष्य
भारत ने अपने ऊर्जा उत्पादन को अधिक स्वच्छ और टिकाऊ बनाने के लिए कई कदम उठाए हैं। सरकार ने 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से 40% ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा है। इसके साथ ही, भारत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में योगदान देने के लिए प्रतिबद्ध है। हालाँकि, भारत की बड़ी आबादी और तेजी से बढ़ती औद्योगिक अर्थव्यवस्था को देखते हुए, कोयला निकट भविष्य में एक महत्वपूर्ण ऊर्जा स्रोत बना रहेगा।
भारत का भविष्य का कोयला उत्पादन मुख्य रूप से इस बात पर निर्भर करेगा कि देश अपनी ऊर्जा मांग को किस प्रकार से संतुलित करता है। नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का विकास एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन कोयले की भूमिका को पूरी तरह से समाप्त करना अभी भी चुनौतीपूर्ण है। कोयले से प्राप्त ऊर्जा को धीरे-धीरे स्वच्छ ऊर्जा से बदलने की योजना है, ताकि पर्यावरणीय प्रभावों को कम किया जा सके।
निष्कर्ष
भारत में कोयला उत्पादन का महत्व आर्थिक, सामाजिक और औद्योगिक दृष्टिकोण से बहुत अधिक है। यह उद्योग न केवल लाखों लोगों को रोजगार देता है, बल्कि यह देश की ऊर्जा सुरक्षा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालाँकि, इसके साथ कई पर्यावरणीय चुनौतियाँ जुड़ी हुई हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
भारत ने कोयला उत्पादन में सुधार और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, लेकिन कोयले पर उसकी निर्भरता अभी भी बनी हुई है। निकट भविष्य में भारत को अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं और पर्यावरणीय जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाना होगा। अगर यह सफल होता है, तो भारत कोयला उत्पादन में एक प्रमुख खिलाड़ी बने रहने के साथ-साथ एक स्वच्छ और टिकाऊ ऊर्जा भविष्य की दिशा में भी कदम बढ़ा सकेगा।