संविधान के भाग 9 में क्या है:- भारतीय संविधान का भाग IX “पंचायती राज” से संबंधित है। यह भाग संविधान के अनुच्छेद 243 से 243O तक फैला हुआ है, जिसमें ग्रामीण स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के गठन, उनके कामकाज, शक्तियों और अधिकारों से संबंधित प्रावधान शामिल हैं। संविधान के इस भाग का उद्देश्य ग्रामीण विकास को बढ़ावा देना और लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण को मजबूत करना है।
भाग IX की पृष्ठभूमि
भारत में स्थानीय स्वशासन की अवधारणा प्राचीन काल से ही विद्यमान रही है। लेकिन, आधुनिक पंचायती राज की शुरुआत 20वीं सदी के मध्य में हुई। महात्मा गांधी ने ग्रामीण भारत के विकास के लिए पंचायती राज की वकालत की थी। भारतीय संविधान के निर्माण के समय, संविधान निर्माताओं ने इसे महत्वपूर्ण माना, लेकिन इसे संविधान के मूल प्रारूप में शामिल नहीं किया गया। 1950 और 1960 के दशकों में पंचायती राज व्यवस्था का विकास हुआ, लेकिन इसे कानूनी दर्जा नहीं मिला था। 1992 में 73वें संविधान संशोधन के माध्यम से भाग IX को संविधान में जोड़ा गया, जिससे पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा मिला।
भाग IX की प्रमुख विशेषताएं
1. पंचायती राज संस्थाओं का गठन (अनुच्छेद 243B):
इस अनुच्छेद के तहत, प्रत्येक राज्य में तीन-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था का प्रावधान किया गया है:
- ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत,
- मध्य स्तर पर मध्यवर्ती पंचायत (यदि राज्य की जनसंख्या 20 लाख से अधिक है),
- जिला स्तर पर जिला पंचायत।
2. पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव (अनुच्छेद 243C):
इस अनुच्छेद के तहत, पंचायती राज संस्थाओं के सदस्यों का चुनाव सीधे जनता द्वारा किया जाता है। प्रत्येक पंचायत का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है। यदि किसी कारणवश पंचायत का कार्यकाल समाप्त होने से पहले भंग कर दिया जाता है, तो चुनाव छह महीने के भीतर कराए जाने चाहिए।
3. आरक्षण (अनुच्छेद 243D):
पंचायती राज संस्थाओं में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान है। महिलाओं के लिए कुल सीटों का कम से कम एक तिहाई आरक्षित किया गया है। राज्य सरकारें इस अनुपात को बढ़ा भी सकती हैं।
4. पंचायती राज संस्थाओं के कार्य और अधिकार (अनुच्छेद 243G):
पंचायती राज संस्थाओं को विभिन्न प्रकार के कार्य और अधिकार सौंपे गए हैं। ये कार्य और अधिकार राज्य विधानमंडलों द्वारा अधिनियमित किए गए कानूनों के अनुसार होते हैं। इनमें आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय से संबंधित विषय शामिल हैं।
5. वित्तीय प्रावधान (अनुच्छेद 243H):
इस अनुच्छेद के तहत पंचायती राज संस्थाओं को कर लगाने, शुल्क वसूलने और अन्य वित्तीय संसाधन प्राप्त करने के अधिकार दिए गए हैं। इसके अलावा, केंद्र और राज्य सरकारें भी पंचायती राज संस्थाओं को अनुदान दे सकती हैं।
6. पंचायती राज संस्थाओं का लेखा और अंकेक्षण (अनुच्छेद 243J):
पंचायती राज संस्थाओं के वित्तीय खातों का नियमित अंकेक्षण किया जाना चाहिए। यह अंकेक्षण राज्य सरकार द्वारा नियुक्त लेखा परीक्षकों द्वारा किया जाता है।
7. राज्य वित्त आयोग (अनुच्छेद 243I):
हर राज्य में एक राज्य वित्त आयोग का गठन किया जाना चाहिए, जो पंचायती राज संस्थाओं और नगर पालिकाओं के वित्तीय संसाधनों का पुनःवितरण सुनिश्चित करता है। आयोग की सिफारिशों के आधार पर राज्य सरकारें वित्तीय संसाधनों का आवंटन करती हैं।
8. न्यायिक शक्ति का हस्तांतरण (अनुच्छेद 243M):
अनुच्छेद 243M में कुछ क्षेत्रों और राज्यों को इस भाग के प्रावधानों से बाहर रखा गया है। इनमें नगालैंड, मेघालय, मिजोरम, और पूर्वोत्तर राज्यों के कुछ विशेष क्षेत्रों, साथ ही अनुसूचित और आदिवासी क्षेत्रों को शामिल किया गया है। हालांकि, इन राज्यों की विधानसभाओं को पंचायती राज संस्थाओं के गठन का अधिकार है।
9. पंचायती राज संस्थाओं का अधिग्रहण (अनुच्छेद 243N):
पंचायती राज संस्थाओं के गठन के लिए राज्य सरकारों को इस संविधान संशोधन के अधिनियमित होने के एक साल के भीतर आवश्यक कदम उठाने चाहिए। हालांकि, यह अनुच्छेद पंचायती राज संस्थाओं की स्वायत्तता को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से बनाया गया है।
10. सुधारों और चुनौतियों का निराकरण:
भाग IX के प्रावधानों के बावजूद, पंचायती राज संस्थाओं के प्रभावी कार्यान्वयन में कई चुनौतियाँ हैं। इनमें वित्तीय संसाधनों की कमी, राजनीतिक हस्तक्षेप, और प्रशासनिक समर्थन की कमी शामिल हैं। इसके अलावा, विभिन्न राज्यों में पंचायती राज संस्थाओं के बीच असमानता भी एक बड़ी चुनौती है। राज्यों की पंचायती राज संस्थाओं के लिए अलग-अलग कानूनी ढांचे हैं, जिससे एक समान विकास दर प्राप्त करना कठिन हो जाता है।
भाग IX के सामाजिक और आर्थिक प्रभाव
भाग IX के कार्यान्वयन के बाद से ग्रामीण विकास में महत्वपूर्ण सुधार हुए हैं। पंचायती राज संस्थाओं ने ग्राम स्तर पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में नागरिकों की भागीदारी को बढ़ावा दिया है। महिलाओं और अनुसूचित जातियों/जनजातियों के लिए आरक्षण के प्रावधान ने उन्हें राजनीतिक क्षेत्र में अधिक सशक्त बनाया है। साथ ही, ग्रामीण बुनियादी ढांचे में सुधार, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार, और सामाजिक कल्याण योजनाओं के कार्यान्वयन में पंचायती राज संस्थाओं की भूमिका महत्वपूर्ण रही है।
चुनौतियाँ और संभावनाएँ
हालांकि, पंचायती राज संस्थाओं के समक्ष कई चुनौतियाँ भी विद्यमान हैं। इनमें वित्तीय संसाधनों की कमी, प्रशासनिक कौशल की कमी, और कभी-कभी स्थानीय राजनीति के कारण होने वाली जटिलताएँ शामिल हैं। कुछ मामलों में, पंचायतें स्थानीय प्रभावशाली व्यक्तियों के नियंत्रण में आ जाती हैं, जिससे उनका प्रभाव और स्वायत्तता कमजोर हो जाती है।
इसके बावजूद, पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से विकेंद्रीकृत शासन की अवधारणा में बहुत संभावनाएँ हैं। यदि इन्हें पर्याप्त समर्थन और संसाधन प्रदान किए जाएँ, तो ये ग्रामीण विकास और सामाजिक न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती हैं।
निष्कर्ष
भारतीय संविधान का भाग IX पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण को सुदृढ़ करता है। यह भाग संविधान के तहत ग्रामीण स्थानीय स्वशासन के लिए एक ठोस ढांचा प्रदान करता है, जिससे ग्रामीण विकास को बढ़ावा मिलता है। हालाँकि, इसे प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए चुनौतियाँ हैं, लेकिन अगर इन चुनौतियों का समाधान किया जाए तो यह भाग ग्रामीण भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।