1928 में भारत का संविधान किसने बनाया:- 1928 में भारत का संविधान नहीं बनाया गया था, लेकिन उस समय भारत की आज़ादी के संघर्ष के दौरान संविधान-निर्माण की दिशा में कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए गए थे। दरअसल, 1928 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में “नेहरू रिपोर्ट” तैयार की थी, जो भारत के लिए एक स्वराज संविधान का मसौदा था। यह रिपोर्ट उस समय की परिस्थितियों और भारत की स्वतंत्रता की मांग के मद्देनजर बनाई गई थी।
भारत का वास्तविक संविधान 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ही तैयार हुआ था, जिसे संविधान सभा द्वारा 26 नवंबर 1949 को अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया।
इस उत्तर में मैं आपको 1928 की नेहरू रिपोर्ट और उससे संबंधित घटनाओं के बारे में विस्तार से बताऊंगा, ताकि आप समझ सकें कि उस समय संविधान-निर्माण की दिशा में क्या-क्या कदम उठाए गए थे।
पृष्ठभूमि
ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में कई राजनीतिक और सामाजिक समस्याएं थीं। भारतीय नेता और जनता अंग्रेजी शासन से स्वतंत्रता चाहते थे और इसके लिए विभिन्न आंदोलनों और संघर्षों का सहारा लिया गया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) इस स्वतंत्रता संग्राम का प्रमुख संगठन था, जिसने समय-समय पर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आवाज उठाई।
1927 में ब्रिटिश सरकार ने एक आयोग नियुक्त किया जिसे साइमन कमीशन के नाम से जाना जाता है। इस आयोग का उद्देश्य भारत में संवैधानिक सुधारों का सुझाव देना था। लेकिन इसमें एक भी भारतीय सदस्य नहीं था, जिससे भारतीय जनता में भारी आक्रोश हुआ। भारतीयों ने साइमन कमीशन का बहिष्कार किया और “साइमन वापस जाओ” के नारे लगाए।
नेहरू रिपोर्ट, 1928
साइमन कमीशन के बहिष्कार के बाद, भारतीय नेताओं ने अपने संविधान का मसौदा तैयार करने का निर्णय लिया। इस उद्देश्य से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1928 में एक समिति का गठन किया, जिसके अध्यक्ष मोतीलाल नेहरू थे। इस समिति ने जो मसौदा तैयार किया, उसे “नेहरू रिपोर्ट” के नाम से जाना जाता है।
नेहरू रिपोर्ट ब्रिटिश सरकार के सामने एक स्वराज संविधान की मांग रखती थी। इसमें भारत के लिए एक जिम्मेदार सरकार की मांग की गई थी, जिसमें पूर्ण लोकतांत्रिक अधिकार दिए जाएं। इस रिपोर्ट में निम्नलिखित प्रमुख बिंदु शामिल थे:
- डोमिनियन स्टेटस की मांग: नेहरू रिपोर्ट में भारत के लिए डोमिनियन स्टेटस की मांग की गई थी, जिससे भारत को ब्रिटिश कॉमनवेल्थ का हिस्सा बने रहने की अनुमति मिलती, लेकिन उसे आंतरिक स्वशासन का अधिकार मिलता।
- बुनियादी अधिकारों का प्रस्ताव: रिपोर्ट में नागरिकों के लिए मौलिक अधिकारों की मांग की गई थी, जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, धार्मिक स्वतंत्रता, समानता का अधिकार आदि।
- धार्मिक और सांप्रदायिक अधिकारों का सम्मान: नेहरू रिपोर्ट में धार्मिक और सांप्रदायिक अधिकारों का सम्मान करने पर जोर दिया गया था। इसमें धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा और अल्पसंख्यकों के अधिकारों का सम्मान करने की बात कही गई थी।
- संविधान सभा की स्थापना: नेहरू रिपोर्ट ने संविधान सभा की स्थापना का भी प्रस्ताव रखा, जिसमें भारतीय नेताओं को अपने संविधान का मसौदा तैयार करने का अधिकार दिया जाए।
- प्रांतीय स्वायत्तता: रिपोर्ट में प्रांतों को अधिक स्वायत्तता देने का भी प्रस्ताव था, ताकि वे अपने आंतरिक मामलों में स्वतंत्र निर्णय ले सकें।
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता: न्यायपालिका की स्वतंत्रता की गारंटी देने पर भी जोर दिया गया था, ताकि न्याय व्यवस्था निष्पक्ष और स्वतंत्र हो।
नेहरू रिपोर्ट के प्रभाव और प्रतिक्रिया
नेहरू रिपोर्ट भारत के संविधान-निर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम थी, लेकिन इसे सर्वसम्मति से स्वीकार नहीं किया गया। मुस्लिम लीग के नेता मुहम्मद अली जिन्ना ने इस रिपोर्ट का विरोध किया, क्योंकि इसमें मुस्लिम समुदाय के लिए पृथक चुनाव क्षेत्रों की मांग नहीं मानी गई थी। जिन्ना ने “14 सूत्रीय मांगें” पेश की, जो मुसलमानों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए थी।
नेहरू रिपोर्ट के प्रति कांग्रेस का रवैया भी समय के साथ बदल गया। कांग्रेस के कुछ नेताओं, जैसे जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस, ने डोमिनियन स्टेटस की बजाय पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की।
निष्कर्ष
1928 में नेहरू रिपोर्ट ने भारत में संविधान-निर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, हालांकि यह अंततः भारत का संविधान नहीं बन सका। यह रिपोर्ट भारत की आज़ादी के संघर्ष के दौरान स्वराज और लोकतंत्र की मांगों को स्पष्ट रूप से व्यक्त करती थी।
आखिरकार, भारत का संविधान 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संविधान सभा द्वारा तैयार किया गया, जिसमें डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की महत्वपूर्ण भूमिका थी। इस संविधान को 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया, जो आज भी भारत का मौलिक कानून है।
नेहरू रिपोर्ट को भारतीय संविधान के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर माना जा सकता है, जिसने भारतीय नेताओं को स्वराज और स्वशासन की दिशा में प्रेरित किया और अंततः उन्हें स्वतंत्रता की ओर अग्रसर किया।