भगवान कार्तिकेय, जिन्हें कई नामों से जाना जाता है जैसे कि स्कंद, मुरुगन, शंमुख और सुब्रह्मण्य, हिंदू धर्म में युद्ध और विजय के देवता माने जाते हैं। वे भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र हैं और गणेश जी के छोटे भाई हैं। भगवान कार्तिकेय की पूजा विशेष रूप से दक्षिण भारत में बहुत प्रचलित है, जहां उन्हें मुरुगन के रूप में जाना जाता है। उनकी शक्ति, साहस और ज्ञान के कारण वे हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
इस निबंध में हम भगवान कार्तिकेय के जन्म, उनकी लीलाओं, उनकी पूजा पद्धति, और उनके विभिन्न रूपों पर चर्चा करेंगे।
भगवान कार्तिकेय का जन्म
भगवान कार्तिकेय का जन्म एक विशेष उद्देश्य के लिए हुआ था। पुराणों के अनुसार, जब असुर तारकासुर ने देवताओं को पराजित कर त्रिलोक पर कब्जा कर लिया, तब देवताओं ने भगवान शिव से सहायता मांगी। तारकासुर को वरदान प्राप्त था कि वह केवल शिव के पुत्र के हाथों मारा जा सकता है। लेकिन भगवान शिव तपस्या में लीन थे और विवाह से दूर थे। देवताओं ने देवी पार्वती और शिव का विवाह करवाया, और उनका पुत्र कार्तिकेय, तारकासुर का विनाश करने के लिए अवतरित हुआ।
कार्तिकेय का जन्म विभिन्न पुराणों में विभिन्न तरीकों से वर्णित है, लेकिन सामान्य रूप से यह माना जाता है कि वे अग्नि देवता द्वारा उत्पन्न किए गए थे। उन्हें कार्तिकाओं, यानी छह देवकन्याओं द्वारा पालन-पोषण किया गया था, इसलिए उन्हें कार्तिकेय कहा जाता है। उनके छह मुख होने का कारण भी यही है, क्योंकि उन्होंने हर एक कार्तिका का दूध पिया था। उनके इन छह मुखों के कारण ही उन्हें षण्मुख कहा जाता है, जिसका अर्थ है ‘छह मुखों वाले देवता।’
तारकासुर का वध
भगवान कार्तिकेय का प्रमुख कार्य था तारकासुर का वध करना। वे युवा अवस्था में ही अत्यंत शक्तिशाली योद्धा बन गए थे। उन्होंने देवताओं की सेना का नेतृत्व किया और तारकासुर के साथ भीषण युद्ध किया। अपनी बुद्धिमानी, साहस और युद्ध कौशल से उन्होंने असुरों को पराजित किया और तारकासुर का वध किया। इस विजय के बाद उन्हें देवताओं के सेनापति का पद प्राप्त हुआ, और तब से वे युद्ध और विजय के देवता माने जाते हैं।
भगवान कार्तिकेय के छह मुख
भगवान कार्तिकेय के छह मुख उनके विशिष्ट गुणों और शक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये छह मुख क्रमशः निम्नलिखित गुणों का प्रतीक हैं:
- ज्ञान – ज्ञान और बुद्धि का प्रतीक।
- शक्ति – शारीरिक और मानसिक शक्ति का प्रतीक।
- न्याय – धर्म और न्याय का प्रतिनिधित्व करता है।
- शांति – आंतरिक शांति और संतुलन का प्रतीक।
- सृजन – रचनात्मकता और विकास का प्रतीक।
- विनाश – बुराई का नाश करने की शक्ति का प्रतीक।
इन छह मुखों के कारण ही भगवान कार्तिकेय को अद्वितीय माना जाता है। वे केवल युद्ध के देवता ही नहीं, बल्कि ज्ञान, न्याय, और धर्म के प्रतीक भी हैं।
भगवान कार्तिकेय की पूजा
भगवान कार्तिकेय की पूजा विशेष रूप से दक्षिण भारत में की जाती है, लेकिन उत्तर भारत में भी उन्हें सम्मान दिया जाता है। तमिलनाडु में भगवान मुरुगन के रूप में उनकी पूजा बड़े धूमधाम से की जाती है। वहां कई प्रमुख मंदिर भगवान मुरुगन को समर्पित हैं, जैसे कि पलानी मंदिर, तिरुचेंदूर मंदिर, और स्वामी मलीकप्पुरम मंदिर। इन मंदिरों में भगवान कार्तिकेय की मूर्तियों को उनके दिव्य रूप में दिखाया जाता है, जहां वे युद्ध के लिए तैयार होते हैं, अपने वाहन मयूर (मोर) पर सवार होते हैं।
भगवान कार्तिकेय के साथ मयूर का गहरा संबंध है। मयूर उनके वाहन के रूप में उनका प्रतिनिधित्व करता है, जो अहंकार और इच्छाओं पर विजय पाने का प्रतीक है। वे अपने हाथों में शक्ति, धनुष और बाण रखते हैं, जो उनकी युद्धकला और विजय की शक्तियों का प्रतीक हैं।
दक्षिण भारत में भगवान मुरुगन
दक्षिण भारत में भगवान कार्तिकेय को मुरुगन के नाम से पूजा जाता है। मुरुगन को तमिल संस्कृति में विशेष स्थान प्राप्त है। वे तमिल लोगों के कुलदेवता माने जाते हैं और उनकी पूजा से भक्तों को साहस, शक्ति और विजय प्राप्त होती है। दक्षिण भारत में होने वाले त्यौहारों में थाईपूसम और कंद षष्ठी प्रमुख हैं, जो भगवान मुरुगन को समर्पित होते हैं। इन त्यौहारों के दौरान भक्तगण कठिन व्रत करते हैं और भगवान मुरुगन से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
थाईपूसम त्यौहार के दौरान भक्त अपने शरीर में कांटे और भाले छेदते हुए भगवान मुरुगन की आराधना करते हैं। यह उनके प्रति अपनी आस्था और बलिदान का प्रतीक है। इस समय भक्तगण उनके मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना करते हैं और विभिन्न प्रकार के धार्मिक अनुष्ठानों का पालन करते हैं।
भगवान कार्तिकेय के प्रतीक
भगवान कार्तिकेय के कई प्रतीक हैं, जो उनके चरित्र और उनके कार्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं:
- मोर (मयूर) – अहंकार और इच्छाओं पर विजय पाने का प्रतीक।
- भाला (शक्ति) – यह उनकी युद्धकला और निडरता का प्रतीक है। यह बुराई का नाश करने के लिए उनकी असीम शक्ति को दर्शाता है।
- छह मुख – ये मुख उनके विविध गुणों और शक्तियों का प्रतीक हैं, जैसे कि बुद्धि, शक्ति, और न्याय।
- बाल रूप – भगवान कार्तिकेय को बाल रूप में भी पूजा जाता है, जो उनकी शुद्धता और मासूमियत का प्रतीक है।
भगवान कार्तिकेय की भक्ति का महत्व
भगवान कार्तिकेय के प्रति भक्ति का विशेष महत्व है। उन्हें शक्तिशाली, साहसी और बुद्धिमान देवता माना जाता है, और उनकी पूजा करने से भक्तों को इन गुणों की प्राप्ति होती है। जो लोग साहस, शक्ति और ज्ञान की प्राप्ति चाहते हैं, वे भगवान कार्तिकेय की पूजा करते हैं। उनकी पूजा से जीवन के सभी संघर्षों में विजय प्राप्त की जा सकती है।
भगवान कार्तिकेय के भक्तों का मानना है कि वे संकटों का नाश करते हैं और अपने भक्तों को विपत्तियों से बचाते हैं। उनके भक्त विशेष रूप से उन समस्याओं के समाधान के लिए उनकी शरण में आते हैं, जहां उन्हें मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक शक्ति की आवश्यकता होती है।
निष्कर्ष
भगवान कार्तिकेय हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं, जिनकी पूजा विशेष रूप से दक्षिण भारत में होती है। वे साहस, शक्ति और ज्ञान के प्रतीक हैं। उनकी पूजा से भक्तों को न केवल शारीरिक और मानसिक शक्ति की प्राप्ति होती है, बल्कि जीवन के सभी संघर्षों में विजय भी मिलती है। उनके प्रतीक और उनके गुण उन्हें एक अद्वितीय देवता बनाते हैं, जो भक्तों के जीवन में दिशा और शक्ति प्रदान करते हैं।