भगवान कार्तिकेय, जिन्हें मुरुगन, स्कंद, या सुब्रमण्य के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं। वे भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र और गणेश के बड़े भाई माने जाते हैं। दक्षिण भारत में उनकी पूजा बड़े धूमधाम से की जाती है, लेकिन उत्तर भारत में उनकी पूजा बहुत कम होती है। इस असमानता के पीछे धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक कारण हैं।
इस निबंध में, हम जानेंगे कि भगवान कार्तिकेय की पूजा क्यों सीमित है, खासकर उत्तर भारत में, और इसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भों को समझने का प्रयास करेंगे।
1. पौराणिक और धार्मिक कारण
गणेश की प्रधानता
भगवान कार्तिकेय और गणेश दोनों ही शिव-पार्वती के पुत्र हैं, लेकिन हिंदू धर्म में गणेश को “प्रथम पूज्य” माना जाता है। यह मान्यता है कि हर पूजा, यज्ञ या धार्मिक अनुष्ठान में सबसे पहले गणेश की पूजा की जाती है, जिससे भगवान गणेश की पूजा अधिक सामान्य हो गई है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार शिव और पार्वती ने अपने दोनों पुत्रों, गणेश और कार्तिकेय, के बीच एक दौड़ रखी कि जो सबसे पहले पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाएगा, उसे प्रथम पूज्य का स्थान मिलेगा। कार्तिकेय ने अपनी सवारी मोर पर बैठकर पृथ्वी का चक्कर लगाया, जबकि गणेश ने अपने माता-पिता के चारों ओर परिक्रमा की, जो कि उनके लिए समस्त ब्रह्मांड के समान थे। इस प्रकार गणेश ने बुद्धि का उपयोग करते हुए दौड़ जीत ली और उन्हें प्रथम पूज्य माना गया। इस घटना ने गणेश को प्रमुखता दी और कार्तिकेय की पूजा धीरे-धीरे कम होने लगी।
विवाह न करने का निर्णय
एक और पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान कार्तिकेय ने कभी विवाह नहीं किया। यह उन्हें एक त्यागी और योगी के रूप में प्रस्तुत करता है, जो सांसारिक जीवन और सुखों से दूर रहते हैं। इसके विपरीत, उत्तर भारत के अन्य प्रमुख देवता, जैसे भगवान शिव और भगवान विष्णु, पारिवारिक जीवन जीते हैं, और इस कारण से उनकी पूजा अधिक सामान्य और सहज है। भगवान कार्तिकेय के विवाह न करने का निर्णय उन्हें उत्तर भारत के पारिवारिक और सामाजिक संदर्भों में थोड़ा अलग कर देता है।
2. क्षेत्रीय भेदभाव
दक्षिण भारत में कार्तिकेय की पूजा
दक्षिण भारत में भगवान कार्तिकेय की पूजा बड़े पैमाने पर होती है। विशेष रूप से तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और आंध्र प्रदेश में मुरुगन के नाम से उनकी व्यापक पूजा होती है। दक्षिण भारतीय संस्कृति में कार्तिकेय को युद्ध और साहस के देवता के रूप में माना जाता है, और उनका जुड़ाव तमिल भाषा और संस्कृति से गहरा है। तमिल साहित्य और कविताओं में भी कार्तिकेय की महिमा गाई गई है, जो उन्हें दक्षिण भारतीय समुदायों के लिए और भी महत्वपूर्ण बनाती है।
उत्तर भारत में कार्तिकेय की पूजा की कमी
उत्तर भारत में, कार्तिकेय की पूजा काफी हद तक सीमित है। इसके पीछे कुछ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक कारण हो सकते हैं। कार्तिकेय की पूजा दक्षिण भारत में अधिक प्रमुख है, जबकि उत्तर भारत में समय के साथ अन्य देवताओं की पूजा प्रमुख हो गई। उदाहरण के लिए, भगवान गणेश, भगवान विष्णु, देवी दुर्गा और भगवान शिव की पूजा अधिक सामान्य है। उत्तर भारत में कार्तिकेय के प्रमुख मंदिर भी बहुत कम हैं, जो उनकी पूजा में कमी का एक कारण हो सकता है।
3. सांस्कृतिक और सामाजिक कारण
सांस्कृतिक विभाजन
भारत एक सांस्कृतिक विविधताओं से भरा हुआ देश है, और प्रत्येक क्षेत्र की अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराएँ हैं। दक्षिण भारत में मुरुगन को तमिल योद्धाओं और संतों के प्रतीक के रूप में माना जाता है, जबकि उत्तर भारत में भगवान राम, कृष्ण और शिव की पूजा प्रमुख है। इस सांस्कृतिक विभाजन के कारण कार्तिकेय की पूजा दक्षिण भारत तक ही सीमित हो गई है।
भक्ति आंदोलन और अन्य धार्मिक प्रवृत्तियाँ
भक्ति आंदोलन ने उत्तर भारत में भगवान कृष्ण, भगवान राम और शिव की पूजा को प्रमुखता दी। इसके साथ ही, संतों और भक्तों ने इन देवताओं के गुणों की महिमा गाई, जिससे उत्तर भारतीय समाज में इन्हें अधिक महत्व मिला। कार्तिकेय की पूजा को बढ़ावा देने वाले इस प्रकार के आंदोलनों की कमी रही, जिससे उनकी लोकप्रियता सीमित रही।
4. ऐतिहासिक कारण
उत्तर भारत में मध्यकाल के दौरान मुस्लिम आक्रमणों और विदेशी शासकों के प्रभाव से कई हिंदू मंदिर और धार्मिक स्थलों का विनाश हुआ। इन आक्रमणों के चलते कई धार्मिक परंपराओं में परिवर्तन आया। दक्षिण भारत में ऐसे आक्रमण कम थे, और इस कारण वहां की धार्मिक परंपराएँ सुरक्षित रहीं। दक्षिण भारत में कार्तिकेय की पूजा इसीलिए अब भी प्रचलित है, जबकि उत्तर भारत में यह पूजा धीरे-धीरे कम हो गई।
5. आध्यात्मिक और व्यक्तिगत पूजा
हालांकि कार्तिकेय की पूजा उत्तर भारत में व्यापक नहीं है, कुछ लोग व्यक्तिगत रूप से उनकी उपासना करते हैं। कुछ समुदायों में कार्तिकेय को पुत्र प्राप्ति और शक्ति के देवता के रूप में पूजा जाता है। उन्हें विशेष रूप से संकट और कठिनाइयों के समय याद किया जाता है।
निष्कर्ष
भगवान कार्तिकेय, शिव और पार्वती के पुत्र, दक्षिण भारत में अत्यधिक पूजनीय हैं, लेकिन उत्तर भारत में उनकी पूजा सीमित है। इसके पीछे धार्मिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक कारण हो सकते हैं। जहां दक्षिण भारत में मुरुगन के रूप में उनकी व्यापक पूजा होती है, वहीं उत्तर भारत में गणेश, शिव, और अन्य देवताओं को अधिक प्रमुखता प्राप्त है। इसके बावजूद, कार्तिकेय की दिव्यता और महिमा पूरे भारत में मान्य है, और उनकी पूजा का महत्व कभी कम नहीं होता।